आज फिर आसमान एकदम साफ़ था। और हर बार की तरह मौसम ने मौसम विभाग द्वारा की गई भविष्यवाणियों को झुठला दिया। खैर इन सब बातो का रामेश्वर जी के परिवार से कोई सम्बन्ध नहीं था। उनकी तो सुबह सूर्य की पहली किरण और शाम की सूर्य की अस्त वाली किरण भी एक ही थी। उनकी ज़िन्दगी एक जैसी थी। सुबह दौड़ा भागी में कार्यालय जाना, पत्नी का बच्चो को विद्यालय के लिए तैयार करना बस इसी तरह उनकी सुबह चालू होती थी। परन्तु प्रतिदिन शाम का नज़ारा कुछ और ही था, वो यु की शर्मा जी के पैसे तो अपने उच्चासीन पदाधिकारी रोज़ की फरमाइशों को पूरा करने के कारन पानी की तरह बह जाते थे और इसलिए प्रतिदिन शाम को उनके घर कलह होता। पत्नी और बच्चे खासा रोष प्रकट करते और अपनी अपनी राय रखते। आज महीने का प्रथम दिवस है, आज तो शर्मा जी की तनख्वाह मिलने वाली है। सभी को उनके आने का बेसब्री से इंतज़ार था और हो भी क्यों न क्यूंकि दूधवाले का बिल, बिजली टेलीफोन का बिल तथा बच्चो की फीस भरने का हिसाब जो लग चूका था।
परन्तु उनके आते ही नज़ारा बदल गया। पत्नी ने ध्यान भंग किया, अरे आधी तनख्वाह तो गोल है। शर्मा जी ने धीमे स्वर में कहा – आज बॉस के यहाँ कुछ विशेष अतिथि आने वाले है, उनके खाने पीने के इंतज़ाम में आधे खर्च हो गए। पत्नी ने चिल्लाते हुए कहा – “अरे वाह ! ये कहा का तरीका है। मेहनत हम करे और खाए वो, हमारी आधी तनख्वाह तो वैसे भी उनकी खुशामदी में चली जाती है। और पूर्ती के लिए हर बार उधार से काम चलना पड़ता है। अब ऐसा कब तक चलता रहेगा,पांच पांच बच्चो की परवरिश सर पर है, कल इनकी फीस नहीं भरी तो स्कूल से निकाल देंगे। क्या तुम्हारे साहब तब लाकर देंगे पैसे।” शर्मा जी ने उन्हें समझाया की यदि ऐसा नहीं करते तो उनके उच्चाधिकारी उनका ट्रांसफर करवा देंगे और अब समझ लो यही एक नियम की तरह जीवन भर चलता रहेगा। छोटी बेटी कड़ी सब सुन रही थी। उसकी समझ में बस इतना आया की बड़े अधिकारियो को किसी भी चीज़ के पैसे नहीं लगते, वे तो सब चीज़ो को आदेश देते ही पा लेते है।
अचानक न जाने क्यों आज की सुबह कुछ नया पैगाम लेकर आयी, क्यूंकि आज शर्मा जी का प्रमोशन लेटर आया था। पता लगते ही सरे घर में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी। तभी शर्मा जी की छोटी बच्ची दौड़ कर आई और खुश होती हुई पूछ बैठी , क्या आज के बाद हमें किसी चीज़ को खरीदने के लिए रुपये नहीं लगेंगे ??