दीवारे तोड़ती हूँ

काम करती हूँ, सिर्फ दीवारे तोड़ती हूँ,
कभी राम तो कभी रहीम को पूजती हूँ।
कभी महावीर कभी यीशु पूजती हूँ,
कोई कितनी दीवारे उठाए
पर मैं दीवारे तोड़ती हूँ।
चार धर्म, चार दिशाए
मैं दिशाओ को बीच में बांधकर
दिशाए तोड़ती हूँ।
बांध बांध कर मैं सबको एक करती हूँ।
मैं जो सोचती हूँ, उस शायद युद्ध हो जाए,
परन्तु मैं मन में हज़ारो दीवारे तोड़ती हूँ
मेरे मन में कोई युद्ध नहीं
लेकिन मैं दीवारे तोड़ती हूँ।

कुछ मिले, कुछ बिछड़े

कुछ मिले, कुछ बिछड़े
कुछ याद रहे, कुछ भूल गए
कुछ खो गए, कुछ वापस आये
कुछ जम गए, कुछ जमाये गए
कुछ कहते गए, कुछ खामोश रहे
कुछ अच्छे लगे, कुछ बुरे भी लगे
कुछ थक गए, कुछ चले गए
कुछ रूठ गए, कुछ मनाने गए
कुछ चलते रहे, कुछ बैठ गए
कुछ जागते रहे, कुछ सो गए
जो सो गए, वो खो गए
जो वापस आए, वो जम गए
जो जम गए , वो कहते गए
जो कहते गए, वह बुरे लगे
जो खामोश रहे , वह अच्छे लगे
जो अच्छे लगे, वह थक गए
जो बुरे लगे, वह चले गए

जो चले गए , वह अमर तो नहीं रहे।

काला भौरा

एक काले भौरे को मैं लगातार दो दिन से रोशनदान से बाहर निकलने की कोशिश करती देख रही थी। आज मुझसे रहा नहीं गया और मैंने रोशनदान की एक छोटी खिड़की को खोल कर उसका मार्ग प्रशस्त किया। लेकिन वह अपनी धुन का पक्का मेरे द्वारा खोले गए रास्ते को देख ही नहीं पाया और पुनः अपने निर्थक अथक परिश्रम में लिप्त हो गया। मुझे यह देखकर बहुत दुःख हुआ। मेरी हज़ार उसे निकालने की कोशिशो के बावजूद उसकी स्तिथि में मुझे कोई विशेष परिवर्तन नहीं लगा। उसके एक भौरे होने पर बहुत दया आई,मुझे लगा काश ये मानव होता तो तुरंत अपने मार्ग को प्रशस्त कर लेता। किन्तु तभी मुझे आत्मबोध हुआ नहीं मानव भी इसी तरह अपनी आँखों पर काली पट्टी बांधे रखता है। वह भी हमेशा अपने निराशाजनक परिश्रम को अंधकार की सौगात मानकर जीवन यापन करता है, और ईश्वर को कोसना नहीं भूलता। अब मुझे लगा की मानव होकर भी एक तुच्छ  समझे जाने वाले भौरे और मानव में कोई अंतर नहीं।